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Showing posts from August, 2020

सावधान ! कहीं आप मिलावटी दाल तो नहीं खा रहें हैं। ( Be careful ! Somewhere you are not eating adulterated lentils.)

 जी हाँ ! यदि आप भी मार्केट में बिकने वाली अरहर दाल खरीद कर इस्तेमाल करते है तो ज़रा सावधान हो जाएं। क्योंकि बाजार में साफ सुथरी और शानदार दिखाई देने वाली अरहर की दाल में खेसारी दाल को मिला कर बेचा जा रहा है जो आपको बीमार कर सकती है जिससे आपके पैरों में लकवा मार सकता है।   अरहर की दाल कुछ लोग शौक से और कुछ लोग मज़बूरी में इस्तेमाल करते हैं क्योंकि दाल में प्रोटीन पाई जाती है इसलिए बाजार में गोरखधंदा करने वाले इसी बात का फायदा उठाकर अरहर की दाल से मिलती जुलती खेसारी दाल को मिलाकर बाजार में बेंच रहें है।       ये वही दाल है जिसे वर्ष 1961 में बैन कर दिया गया था। खेसारी दाल भारत में कभी इस कदर लोकप्रिय थी की कई इलाकों में पेमेंट के तौर पर इसका प्रयोग होता था। न्यू साइंटिस्ट मैगज़ीन में वर्ष 1984 में छपी रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया था। वर्ष 1907 में जब देश में भयंकर सूखा पड़ा तो मध्य प्रदेश स्थित रीवा के महाराज ने इस दाल की खेती पर रोक लगा दिया था।  इस दाल को लाकहोली दाल के नाम से भी जाना जाता है। किसी समय में इसका इस्तेमाल किसान लोग जानवरों के चारे के रूप में करते थे। लेकिन सरका

जाने सूरजमुखी आपके लिए कितना फायदेमंद है ? (Know how beneficial sunflower is for you?)

 सूरजमुखी (Sunflower) सूरजमुखी के फूल दुनिया के चुनिंदा खूबसूरत फूलों में गिने जाते है। ये जितना दिखने में खूबसूरत होते  है उससे कहीं ज्यादा गुणकारी होते है। सूरजमुखी एक अमेरिकी वानस्पतिक पौधा है। लेकिन यह रूस, ब्रिटेन, मिस्र, डेनमार्क, स्वीडन और भारत आदि अनेक देशों में आज उगाया जाता है। इसे लोग सूरजमुखी इस कारण से कहते है क्योंकि यह सूर्य की ओर झुकता रहता है, प्रायः सभी पेड़-पौधे सूर्य प्रकाश के लिए सूर्य की ओर कुछ न कुछ झुके रहते है, लेकिन सूरजमुखी का सूर्य की ओर झुकना आँखों से देखा जा सकता है ज्यादातर इनका उपयोग घरों की शोभा बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके फूल की पंखुड़ियाँ पीले रंग की होती है और मध्य में भूरे, पीत या निलेहित या किसी-किसी पौधे में काला चक्र होता है। चक्र में ही चिपटे काले बीज होते है। बीज से ही उच्च कोटि का खाद्य तेल प्राप्त होता है और इसकी खली मुर्गी की खिलाई जाती है। सूरजमुखी के पौधे में रितुआ रोग भी कभी-कभी लग जाता है। जिससे पत्तियों में पीले-भूरे रंग के चकत्ते पड़ जाते है। इससे बचाव के लिए गंधक की धूल का छिड़काव किया जाता है।  वैज्ञानिक वर्गीकरण जगत : Plantae अश्रे

जानिए आखिर क्यों कहते है इसे सदाबहार ? (Know why it is called evergreen?)

  सदाफूली या सदाबहार बारहों महीने खिलने वाला एक छोटा झाड़ीनुमा पौधा है। इसके गोल पत्ते थोड़ी लम्बाई लिए अंडाकार और चिकने होते है। यह एक ऐसा पौधा है जो कहीं भी आसानी से उग जाता है और फलता फूलता है।इस पौधे को ज्यादा रखवाली की भी जरुरत नहीं होती है, यह ईटो और पत्थरों पर भी आसानी से अपने आप उग जाता है और बिना खाद-पानी के फलता फूलता रहता है पांच पंखुड़ियों वाले पुष्पों गुलाबी, सफ़ेद, फालसाई, जामुनी आदि रंगो में पाया जाता है। इसके चिकने मोटे पत्तों के कारण ही पानी का वाष्पीकरण कम होता है और इसे पानी की आवश्यकता कम होती है। इसके कहीं भी उग जाने के कारण और हमेशा हरा-भरा रहने के कारण ही लोग इसे नयनतारा या सदाबहार कहते है।  इसके फूलों को तोड़कर रख देने पर लम्बे समय तक ताज़े रहते है। इसलिए मंदिरों में पूजा के लिए इनका खूब इस्तेमाल  होता है।  सदाबहार का इतिहास   सदाबहार की आठ प्रजातियाँ पाई जाती है। इनमे से सात मेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। पूरे भारत और संभवतः एशिया, अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका महाद्वीप में भी इसकी कुछ प्रजाति पायी जाती है। मेडागास्कर मूल की फूलदार झाड़ी भार